Thursday, September 18, 2008

दूर दूर रहते हुये

कभी दूर- दूर रहते हुयेहोते हम कितने पास-पासकभी पास- पास रहते हुयेहोते हम कितनी दूर-दूरकभी किसी उत्सव के दिन भीमन हो जाता उदास-उदासकभी उदासी के क्षण में भीउभरता अधरों पर स्मित हासबहुत सी कही बातों के बीचअनकहा बहुत रह जाता हैबहुत कुछ सुनते-सुनते कभीकुछ अनसुना कर दिया जाता हैहँसते-हँसाते चेहरों के पीछे कभी मायूसी भी रहती हैउदास-उदास आँखें किसी कीकोई खुशी तलाशती रहतीं हैंकभी अवकाश में बैठ बाँचतेलेखा-जोखा खोने-पाने कालगता जैसे सब कुछ बेमानीमौसम का क्रम आने-जाने कामन की गति कोई क्या जानेकभी हँसा दे तो कभी रुला देकभी चुप्पी के बीच कहींकानों में आकर एक गीत सुना दे।

Tuesday, September 16, 2008

व्यथा

दिल के कागज़ पर लिखी, वह एक पुरानी पाती है।नाम चाहे जो कह लो, पूजा, ज़िन्दगी या स्वाति है।।रेत के घरौंदो पर जब भी उकेरता हूँ चित्र कोई।जाने क्यूँ जाने अनजाने उसकी तस्वीर उभर आती है।।सोचा था कभी जीवन भर, यूँ ही साथ रहेगा हमारा।लेकिन नियति की मंजूरी से, आँख मेरी भर आती है।।नये समय की रौनक में वो सब याराना भूल गये।हर किसी की नईं हैं राहें, राहें निभा न पाती है।।जब कभी यादें अपने गुज़रें पलों की आती है।।हाल बयां क्या करूँ मैं, यारो जान सी मेरी जाती है।।

Choti Choti baten

छोटी छोटी बातों में, कितना सुख समाया हैउनकी वो मुस्कुराहट, उनके आने की आहट,छोटी सी पाती में कितना सन्देसा आया है।छोटी छोटी बातों में....नन्हे से ताल में, पूरे गगन की छाया,छोटे से पंछी ने, उड़ने को पर फैलाया,नन्हीं कलियों ने, सौरभ बिखराया है।छोटी छोटी बातों में....छोटे से शब्द माँ में, कितना छिपाहै प्यार,छोटी सी एक ’हाँ’ ने, बदला मेरा संसार,थोड़ा सा देकर मन ने, कितना कुछ पाया है।छोटी छोटी बातों में....कुछ ही शब्दों से मिलकर, गीत एक बन जाता हैसात सुर की सरगम से, उनमें स्वर ढल जाता है,उन गीतों से किसी ने, सपना सजाया है।छोटी छोटी बातों में, कितना सुख समाया है

Wednesday, September 10, 2008

Ardh Satya


चक्रव्युह में घुसने से पहलेकौन था मैं और कैसा थायह मुझे याद ही ना रहेगा ।
चक्रव्यूह में घुसने के बादमेरे और चक्रव्यूह के बीचसिर्फ एक जानलेवा निकटथा थीइसका मुझे पता ही ना चलेगा ।
चक्रव्यूह से निकलने के बादमैं मुक्त हो जाऊं भले हीफिर भी चक्रव्यूह कि रचना मेंफर्क ही ना पड़ेगा ।
मरूं या मारूंमारा जाऊं या जान से मार दूंइसका फैसला कभी ना हो पायेगा ।
सोया हुआ आदमी जबनींद से उठकर चलना शुरू कर्ता हैतब सपनों का संसार उसेदोबारा दिख ही ना पायेगा ।
उस रौशनी में जो निर्णय कि रौशनी हैसब कुछ समान हो जाएगा क्या ?
एक पल्दे में नपुंसकताएक पल्दे में पौरुषऔर ठीक तराजू के कांटे परअर्ध सत्य ।

Madhusala Ki Panktiyan



मुसलमान औ’ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।
आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिरजहाँ अभी हैं मन्दिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।
कभी न सुन पड़ता, ‘इसने, हा, छू दी मेरी हाला’,कभी न कोई कहता, ‘उसने जूठा कर डाला प्याला’,सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।
छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,आने के ही साथ जगत में कहलाया ‘जानेवाला’,स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।