Thursday, September 18, 2008
दूर दूर रहते हुये
कभी दूर- दूर रहते हुयेहोते हम कितने पास-पासकभी पास- पास रहते हुयेहोते हम कितनी दूर-दूरकभी किसी उत्सव के दिन भीमन हो जाता उदास-उदासकभी उदासी के क्षण में भीउभरता अधरों पर स्मित हासबहुत सी कही बातों के बीचअनकहा बहुत रह जाता हैबहुत कुछ सुनते-सुनते कभीकुछ अनसुना कर दिया जाता हैहँसते-हँसाते चेहरों के पीछे कभी मायूसी भी रहती हैउदास-उदास आँखें किसी कीकोई खुशी तलाशती रहतीं हैंकभी अवकाश में बैठ बाँचतेलेखा-जोखा खोने-पाने कालगता जैसे सब कुछ बेमानीमौसम का क्रम आने-जाने कामन की गति कोई क्या जानेकभी हँसा दे तो कभी रुला देकभी चुप्पी के बीच कहींकानों में आकर एक गीत सुना दे।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment