Wednesday, September 10, 2008
Ardh Satya
चक्रव्युह में घुसने से पहलेकौन था मैं और कैसा थायह मुझे याद ही ना रहेगा ।
चक्रव्यूह में घुसने के बादमेरे और चक्रव्यूह के बीचसिर्फ एक जानलेवा निकटथा थीइसका मुझे पता ही ना चलेगा ।
चक्रव्यूह से निकलने के बादमैं मुक्त हो जाऊं भले हीफिर भी चक्रव्यूह कि रचना मेंफर्क ही ना पड़ेगा ।
मरूं या मारूंमारा जाऊं या जान से मार दूंइसका फैसला कभी ना हो पायेगा ।
सोया हुआ आदमी जबनींद से उठकर चलना शुरू कर्ता हैतब सपनों का संसार उसेदोबारा दिख ही ना पायेगा ।
उस रौशनी में जो निर्णय कि रौशनी हैसब कुछ समान हो जाएगा क्या ?
एक पल्दे में नपुंसकताएक पल्दे में पौरुषऔर ठीक तराजू के कांटे परअर्ध सत्य ।
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1 comment:
nice its a impresive dialog
keep it up.
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