Tuesday, September 16, 2008

व्यथा

दिल के कागज़ पर लिखी, वह एक पुरानी पाती है।नाम चाहे जो कह लो, पूजा, ज़िन्दगी या स्वाति है।।रेत के घरौंदो पर जब भी उकेरता हूँ चित्र कोई।जाने क्यूँ जाने अनजाने उसकी तस्वीर उभर आती है।।सोचा था कभी जीवन भर, यूँ ही साथ रहेगा हमारा।लेकिन नियति की मंजूरी से, आँख मेरी भर आती है।।नये समय की रौनक में वो सब याराना भूल गये।हर किसी की नईं हैं राहें, राहें निभा न पाती है।।जब कभी यादें अपने गुज़रें पलों की आती है।।हाल बयां क्या करूँ मैं, यारो जान सी मेरी जाती है।।

4 comments:

Udan Tashtari said...

हिन्दी चिट्ठाजगत में आपका स्वागत है. नियमित लेखन के लिए मेरी हार्दिक शुभकामनाऐं.

वर्ड वेरिपिकेशन हटा लें तो टिप्पणी करने में सुविधा होगी. बस एक निवेदन है.

Sanjay Tiwari said...

ब्लाग की दुनिया में आपका स्वागत है.

شہروز said...

इक बेचैनी है, इक छटपटाहट है aapke अन्दर.
और इसे अभिव्यक्त करने का आपका प्रयास अच्छा है.
लिखना ही हमें आशा बंधाता है, इक नए सवेरे का.

कभी फ़ुर्सत मिले तो मेरे भी दिनरात देख लें.link है:

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com
http://saajha-sarokaar.blogspot.com
http://hamzabaan.blogspot.com

kar lo duniya muththee me said...

।सोचा था कभी जीवन भर, यूँ ही साथ रहेगा हमारा।लेकिन नियति की मंजूरी से, आँख मेरी भर आती है
बहुत सटीक लिखा है हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है निरंतरता की चाहत है समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी दस्तक दें