Monday, December 8, 2008
दो कदम
मैं दो कदम चलता और एक पल को रूकता मगर,इस एक पल में जिन्दगी मुझसे 4 कदम आगे chali जाती,मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रूकता मगर,जिन्दगी मुझसे फिर ४ कदम आगे chali जाती,जिन्दगी को jeet ta देख मैं muskurata और जिन्दगी मेरी mushkurahat पर hairan होती,ये silsila yuhi चलता रहा ,फिर एक दिन मुझको hasta देख एक sitare ने पुछा "तुम harkar भी muskurate हो ,क्या तुम्हे दुःख नहीं होता haar का?" तब मैंने कहा ,मुझे पता है एक ऐसी sarhad aayegi jaha से जिन्दगी ४ तो क्या एक कदम भी आगे नहीं जा payegi और तब जिन्दगी मेरा intzaar karegi और मैं तब भी अपनी raftar से yuhi चलता रुकता wahan pahunchunga .........एक पल ruk कर जिन्दगी की taraf देख कर muskuraoonga,beete safar को एक नज़र देख अपने कदम फिर badhaoonga ,ठीक usi पल मैं जिन्दगी से jeet jaunga,मैं अपनी haar पर muskuraya था और अपनी jeet पर भी muskuraunga और जिन्दगी अपनी jeet पर भी न मुस्कुरा पाई थी और अपनी haar पर भी न मुस्कुरा पायेगी, बस तभी मैं जिन्दगी को जीना सिखाऊँगा
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