Monday, December 8, 2008

हुनर मुझमैं नहीं……….

चेहरे बदलने का हुनर मुझमैं नहीं ,दर्द दिल में हो तो हसँने का हुनर मुझमें नहीं,मैं तो आईना हुँ तुझसे तुझ जैसी ही मैं बात करू,टूट कर सँवरने का हुनर मुझमैं नहीं ।चलते चलते थम जाने का हुनर मुझमैं नहीं,एक बार मिल के छोड जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो दरिया हुँ , बेहता ही रहा ,तुफान से डर जाने का हुनर मुझमैं नहीं ।सरहदों में बंट जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,रोशनी में भी दिख पाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो हवा हुँ , महकती ही रही ,आशिंयाने मैं रह पाने का हुनर मुझमैं नहीं ।सुन के दर्द और सताने का हुनर मुझमैं नही ,धर्म के नाम पर खुन बहाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो इन्सान हुँ , इन्सान ही रहूँ ,सब कुछ भुल जाने का हुनर मुझमैं नहीं ।अपने दम पे जगमगाने हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो रात को ही दिखुंगा ,दिन में दिख पाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो चांद हूँ तन्हा ही रहा ,तारों की तरह साथ रह पाने का हुनर मुझमैं नहीं ।सुख में खो जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,दुख में घबराने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो जिन्दगी हुँ चलती ही रहुँ ,व़क़्त साथ छोड जाने हुनर मुझमैं नहीं ।त़कलीफ में अश्क बहाने का हुनर मुझमैं नहीं ,दोस्तों के सामने छिप जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो एहसास हुँ ,मन में ही बसुं ,भगवान की तरह पत्थरों में रह पाने का हुनर मुझमैं नहीं।

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