Monday, December 8, 2008
बात बहुत मामूली है…..
रात तब नहीं होती जब अंधेरा आ जाता है, रात तब होती है जब उज़ाला चला जाता है……बात बहुत मामूली है…..इसिलिये तो खास है…..! दर्द तब नहीं होता जब कोई भुला देता है,दर्द तब होता है जब वो याद बहुत आता है……..बात बहुत मामूली है…..इसिलिये तो खास है…..! मैं तब नहीं थकता जब बहुत चल लेता हूँ,मैं बहुत थक जाता हूँ जब खुद को अकेला पाता हूँ…बात बहुत मामूली है…..इसिलिये तो खास है…..! ज़ुल्म तब नहीं बढ़ता जब लोग बुरे हो जाते हैं,ज़ुल्म तब बढ़ जाता है जब अच्छे लोग सो जाते हैं….बात बहुत मामूली है…..इसिलिये तो खास है…..!
प्यारी माँ
प्यारी माँ तू कैसी है क्या मुझको याद करती है तूने पूछा था कैसा हूँ मै मै अच्छा हूँतेरी ही सोच के जैसा हूँयंहा सब सो गए हैं मै अकेला बैठा हूँसोचता हूँ क्या करती होगी तू काम करते करते बालों का जूडा बनाती होगी या फिर बिखरे समानो को समेटती होगी पर माँ अब समान फैलाता होगा कौन मै तो यंहा बैठा हूँ मौन सुनो माँ तुमने सिखाया था सच बोलो सदा आज जो सच बोला तो क्लास के बाहर खड़ा थातुमने ने जैसा कहा है वैसा ही करता हूँ ख़ुद से पहले ध्यान दुसरों का रखता हूँ पर देखो न माँ सब से पीछे रह गया हूँ सब कुछ आता है मुझको फ़िर भी टीचर की निगाह से गिर गया हूँ किसी पे हाथ न उठाना तुम ने कहा था पर जानती हो माँ आजउन्होंने बहुत मारा है मुझे जवाब मै भी दे सकता था पर मारना तो बुरी बात है न माँ यंहा सभी मुझे बुजदिल समझते हैं मै कमजोर नही हूँमै तो तेरा बहादुर बेटा हूँ हूँ न माँअब तुम ही कहो क्या मै कुछ ग़लत कर रहा हूँ तेरा कहा ही तो कर रहा हूँ तू तो ग़लत हो सकती नही फिर सब कुछ क्यों ग़लत हो रहा है बताओ न माँ क्या इनको ये बातें मालूम नही माँ एक बार यहां आओ न जो कुछ मुझे बताया इन्हे भी समझाओ न एक बात बताओ क्या आज भी तू कहेगी कि तुझे मुझपे गर्व है माँ बोलो न क्या मै तेरी सोच के जैसा हूँ और तेरा राजा बेटा हूं!
मैं कौन हूँ…….
मैं कौन हूँ , मैं कौन हूँ , मैं कौन हूँ ।जर्रा हूँ , समन्दर हूँ , या तुफान हूँ ,मैं कौन हूँ , मैं नहीं जानता ,मैं खुद से अभी तक अनजान हूँ ।पानी हूँ , कश्ती हूँ , या साहिल हूँ ,जीवन से बन्धा एक रिश्ता या ,रिश्तो में बन्धी एक जान हूँ ।आँखों में छुपा एक आँसूं हूँ या ,दिल में बसा एक अरमान हूँ ।मैं कौन हूँ ,मैं कौन हूँ ,मैं कौन हूँ ,मैं कौन हूँ , मैं नहीं जानता ,मैं खुद से अभी तक अनजान हूँ ।कौन हूँ मैं , गैर हूँ या अपना हूँ ,बोझ हूँ किसी पर , या दुआ हूँ या ,खुदा का किया कोई एहसान हूँ ।मैं कौन हूँ………खुशी हूँ , दर्द हूँ , या कोई एहसास हूँ ,तन्हा हूँ या मैं किसी के पास हूँ ,साज़ हूँ , राग हूँ , या दर्द भरी आवाज़ हूँ ,मैं कौन हूँ , मैं नहीं जानता ,मैं खुद से अभी तक अनजान हूँ ।गीत हूँ , गज़ल हूँ , या शायर का कोई अन्दाज़ हूँ ,मैं कौन हूँ , मैं कौन हूँ , मैं कौन हूँ ,अन्त हूँ , मध्य हूँ , या कोई आगाज़ हूँमैं कौन हूँ ,मैं कौन हूँ ,मैं कौन हूँ ,सोचते सोचते एक उम्र गुज़र जायेगी ,है यकीं मुझको मेरी पहचान मिल जायेगी ।
हुनर मुझमैं नहीं……….
चेहरे बदलने का हुनर मुझमैं नहीं ,दर्द दिल में हो तो हसँने का हुनर मुझमें नहीं,मैं तो आईना हुँ तुझसे तुझ जैसी ही मैं बात करू,टूट कर सँवरने का हुनर मुझमैं नहीं ।चलते चलते थम जाने का हुनर मुझमैं नहीं,एक बार मिल के छोड जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो दरिया हुँ , बेहता ही रहा ,तुफान से डर जाने का हुनर मुझमैं नहीं ।सरहदों में बंट जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,रोशनी में भी दिख पाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो हवा हुँ , महकती ही रही ,आशिंयाने मैं रह पाने का हुनर मुझमैं नहीं ।सुन के दर्द और सताने का हुनर मुझमैं नही ,धर्म के नाम पर खुन बहाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो इन्सान हुँ , इन्सान ही रहूँ ,सब कुछ भुल जाने का हुनर मुझमैं नहीं ।अपने दम पे जगमगाने हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो रात को ही दिखुंगा ,दिन में दिख पाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो चांद हूँ तन्हा ही रहा ,तारों की तरह साथ रह पाने का हुनर मुझमैं नहीं ।सुख में खो जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,दुख में घबराने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो जिन्दगी हुँ चलती ही रहुँ ,व़क़्त साथ छोड जाने हुनर मुझमैं नहीं ।त़कलीफ में अश्क बहाने का हुनर मुझमैं नहीं ,दोस्तों के सामने छिप जाने का हुनर मुझमैं नहीं ,मैं तो एहसास हुँ ,मन में ही बसुं ,भगवान की तरह पत्थरों में रह पाने का हुनर मुझमैं नहीं।
दो कदम
मैं दो कदम चलता और एक पल को रूकता मगर,इस एक पल में जिन्दगी मुझसे 4 कदम आगे chali जाती,मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रूकता मगर,जिन्दगी मुझसे फिर ४ कदम आगे chali जाती,जिन्दगी को jeet ta देख मैं muskurata और जिन्दगी मेरी mushkurahat पर hairan होती,ये silsila yuhi चलता रहा ,फिर एक दिन मुझको hasta देख एक sitare ने पुछा "तुम harkar भी muskurate हो ,क्या तुम्हे दुःख नहीं होता haar का?" तब मैंने कहा ,मुझे पता है एक ऐसी sarhad aayegi jaha से जिन्दगी ४ तो क्या एक कदम भी आगे नहीं जा payegi और तब जिन्दगी मेरा intzaar karegi और मैं तब भी अपनी raftar से yuhi चलता रुकता wahan pahunchunga .........एक पल ruk कर जिन्दगी की taraf देख कर muskuraoonga,beete safar को एक नज़र देख अपने कदम फिर badhaoonga ,ठीक usi पल मैं जिन्दगी से jeet jaunga,मैं अपनी haar पर muskuraya था और अपनी jeet पर भी muskuraunga और जिन्दगी अपनी jeet पर भी न मुस्कुरा पाई थी और अपनी haar पर भी न मुस्कुरा पायेगी, बस तभी मैं जिन्दगी को जीना सिखाऊँगा
आज, ना जाने क्यों ?
आज, ना जाने क्यों ? थक गया हूँ जीवन की इस दौड में कोई राह नहीं सामने दूर तक इन उनींदी आँखों में नया जीवन चाहता हूँ आज मैं रोना चाहता हूँ
भय था कभी विकराल लडकपन था नादान माँ का असीम प्यार पिता की डाँट और दुलार जून की दोपहरी में, छत पर वही बिछौना चाहता हूँ आज मै रोना चाहता हूँ
नाना नानी की कहानियाँ दादा दादी की परेशानियाँ भैया दीदी की लडाईयाँ पापा मम्मी की बलाइयाँ बस उन्हीं लम्हों में आज फिर खोना चाहता हूँ आज मैं रोना चाहता हूँ
साथियों के संग होली का हुडदंग बारिश में कागज की नाव दबंग गर्मियों में छुट्टियों के दिन स्कूल में सीखने की उमंग अपने अकेलेपन में, वो टूटे मोती पिरोना चाहता हूँ आज मैं रोना चाहता हूँ
कुछ कर गुजरने की चाह सफलता की वो कठिन राह मुश्किलों का सामना करने की पापा की वो सलाह आज फिर से वही सपने संजोना चाहता हूँ ना जाने क्यों, आज मैं रोना चाहता हूँ
शायद कुछ छोड आया पीछे आगे बढ़ने की हौड में पीछे रह गये सब, मैं अकेला इस अंधी दौड में लौटा दो कोई मेरा बचपन, पुराना खिलौना चाहता हूँ हाँ, आज मैं रोना चाहता हूँ
नहीं जानता कि कहाँ जाना है क्या कुछ वापस पाना है इस जीवन में मै टूट बिखर चुका हूँ कब से उन्हीं सुनहरे पलों में जी भर सोना चाहता हूँ आज मैं, ना जाने क्यों, रोना चाहता हूँ
भय था कभी विकराल लडकपन था नादान माँ का असीम प्यार पिता की डाँट और दुलार जून की दोपहरी में, छत पर वही बिछौना चाहता हूँ आज मै रोना चाहता हूँ
नाना नानी की कहानियाँ दादा दादी की परेशानियाँ भैया दीदी की लडाईयाँ पापा मम्मी की बलाइयाँ बस उन्हीं लम्हों में आज फिर खोना चाहता हूँ आज मैं रोना चाहता हूँ
साथियों के संग होली का हुडदंग बारिश में कागज की नाव दबंग गर्मियों में छुट्टियों के दिन स्कूल में सीखने की उमंग अपने अकेलेपन में, वो टूटे मोती पिरोना चाहता हूँ आज मैं रोना चाहता हूँ
कुछ कर गुजरने की चाह सफलता की वो कठिन राह मुश्किलों का सामना करने की पापा की वो सलाह आज फिर से वही सपने संजोना चाहता हूँ ना जाने क्यों, आज मैं रोना चाहता हूँ
शायद कुछ छोड आया पीछे आगे बढ़ने की हौड में पीछे रह गये सब, मैं अकेला इस अंधी दौड में लौटा दो कोई मेरा बचपन, पुराना खिलौना चाहता हूँ हाँ, आज मैं रोना चाहता हूँ
नहीं जानता कि कहाँ जाना है क्या कुछ वापस पाना है इस जीवन में मै टूट बिखर चुका हूँ कब से उन्हीं सुनहरे पलों में जी भर सोना चाहता हूँ आज मैं, ना जाने क्यों, रोना चाहता हूँ
Thursday, September 18, 2008
दूर दूर रहते हुये
कभी दूर- दूर रहते हुयेहोते हम कितने पास-पासकभी पास- पास रहते हुयेहोते हम कितनी दूर-दूरकभी किसी उत्सव के दिन भीमन हो जाता उदास-उदासकभी उदासी के क्षण में भीउभरता अधरों पर स्मित हासबहुत सी कही बातों के बीचअनकहा बहुत रह जाता हैबहुत कुछ सुनते-सुनते कभीकुछ अनसुना कर दिया जाता हैहँसते-हँसाते चेहरों के पीछे कभी मायूसी भी रहती हैउदास-उदास आँखें किसी कीकोई खुशी तलाशती रहतीं हैंकभी अवकाश में बैठ बाँचतेलेखा-जोखा खोने-पाने कालगता जैसे सब कुछ बेमानीमौसम का क्रम आने-जाने कामन की गति कोई क्या जानेकभी हँसा दे तो कभी रुला देकभी चुप्पी के बीच कहींकानों में आकर एक गीत सुना दे।
Tuesday, September 16, 2008
व्यथा
दिल के कागज़ पर लिखी, वह एक पुरानी पाती है।नाम चाहे जो कह लो, पूजा, ज़िन्दगी या स्वाति है।।रेत के घरौंदो पर जब भी उकेरता हूँ चित्र कोई।जाने क्यूँ जाने अनजाने उसकी तस्वीर उभर आती है।।सोचा था कभी जीवन भर, यूँ ही साथ रहेगा हमारा।लेकिन नियति की मंजूरी से, आँख मेरी भर आती है।।नये समय की रौनक में वो सब याराना भूल गये।हर किसी की नईं हैं राहें, राहें निभा न पाती है।।जब कभी यादें अपने गुज़रें पलों की आती है।।हाल बयां क्या करूँ मैं, यारो जान सी मेरी जाती है।।
Choti Choti baten
छोटी छोटी बातों में, कितना सुख समाया हैउनकी वो मुस्कुराहट, उनके आने की आहट,छोटी सी पाती में कितना सन्देसा आया है।छोटी छोटी बातों में....नन्हे से ताल में, पूरे गगन की छाया,छोटे से पंछी ने, उड़ने को पर फैलाया,नन्हीं कलियों ने, सौरभ बिखराया है।छोटी छोटी बातों में....छोटे से शब्द माँ में, कितना छिपाहै प्यार,छोटी सी एक ’हाँ’ ने, बदला मेरा संसार,थोड़ा सा देकर मन ने, कितना कुछ पाया है।छोटी छोटी बातों में....कुछ ही शब्दों से मिलकर, गीत एक बन जाता हैसात सुर की सरगम से, उनमें स्वर ढल जाता है,उन गीतों से किसी ने, सपना सजाया है।छोटी छोटी बातों में, कितना सुख समाया है
Wednesday, September 10, 2008
Ardh Satya
चक्रव्युह में घुसने से पहलेकौन था मैं और कैसा थायह मुझे याद ही ना रहेगा ।
चक्रव्यूह में घुसने के बादमेरे और चक्रव्यूह के बीचसिर्फ एक जानलेवा निकटथा थीइसका मुझे पता ही ना चलेगा ।
चक्रव्यूह से निकलने के बादमैं मुक्त हो जाऊं भले हीफिर भी चक्रव्यूह कि रचना मेंफर्क ही ना पड़ेगा ।
मरूं या मारूंमारा जाऊं या जान से मार दूंइसका फैसला कभी ना हो पायेगा ।
सोया हुआ आदमी जबनींद से उठकर चलना शुरू कर्ता हैतब सपनों का संसार उसेदोबारा दिख ही ना पायेगा ।
उस रौशनी में जो निर्णय कि रौशनी हैसब कुछ समान हो जाएगा क्या ?
एक पल्दे में नपुंसकताएक पल्दे में पौरुषऔर ठीक तराजू के कांटे परअर्ध सत्य ।
Madhusala Ki Panktiyan
मुसलमान औ’ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।
आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिरजहाँ अभी हैं मन्दिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।।५३।
कभी न सुन पड़ता, ‘इसने, हा, छू दी मेरी हाला’,कभी न कोई कहता, ‘उसने जूठा कर डाला प्याला’,सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।।५७।
छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,आने के ही साथ जगत में कहलाया ‘जानेवाला’,स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।।६६।
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